ब्रजेश जैन, अंतिम अपडेट: गुरुवार मई 25, 2017
नई दिल्ली : भारत एक ऐसा देश
हैं जहां आजादी से पहले ही जाति शब्द के मायने तय हो चुके थे, जाति एक ऐसा शब्द है
जो हर तरह के मजहब को दर्शाता है। जाति वो शब्द है जिसके कारण आपसी भेदभाव,
दंगे-फसाद और तो और खूनी-संघर्ष जैसे भयानक चेहरे समाज के सामने देखने को मिलते
हैं।
मुझे बताते हुए
किसी तरह का आश्चर्य नहीं हो रहा है कि हमारे हिंदुस्तान की जड़े इतनी कमजोर हो
चुकी हैं कि आपसी तनाव और झगड़े की वजह से बाहरी ताकतें पूरी तरह से हम पर हावी हो
जाती हैं, क्योंकि हमारे देश की जनता बिना कुछ सोचे समझे मारकाट पर उतर आती है, और
उसमें घी डालने का काम सफेदी पोशाक पहनने वाले ये राजनेता करते हैं। नेता अंदरुनी
मुद्दों को भयानक रुप देने का काम करते हैं, लोगों को भड़काने का काम करते हैं, अपने
कारनामों को छुपाने का काम करते हैं और तो और एक नया आतंकी पैदा करने का काम भी
करते हैं।
वोट बैंक की
राजनीति करने वाले कुछ राजनेताओं का मकसद सिर्फ समाज में अपवाद पैदा करना है। चाहे
सरकार किसी की भी हो उन्हें सिर्फ और सिर्फ अपने वोटबैंक और कुर्सी की परवाह होती
है।
देश में पहले भी
कई बड़े दंगे हो चुके हैं चाहे वो देश की भलाई के लिए क्यों ना हों, लेकिन नुकसान
हर छोटे-बड़े तबके के लोगों का ही होता है। कुछ समय तक तो प्रशासन चुप बैठता है और
जब हालात काबू से बाहर हो जाते हैं तो उन्हें काबू में लाने के लिए धाराएं लगाई
जाने लगती है। लोगों पर आंसू गैस के गोले छोड़े जाते हैं, डंडों से मारा जाता है
लेकिन इन सबसे अलग किसी ने जानने की कोशिश ही नहीं कि आखिर ये सबकुछ क्यों और
किसकी वजह से हो रहा है।
बताते हुए बहुत
दु:ख हो रहा है कि राजनीतिक पार्टियों का काम देश और समाज को शांतिपूर्ण तरीके से
चलाने का है लेकिन क्या पार्टियां अपने इस काम को बखूबी तरीके से पूरा कर रही हैं,
नहीं क्योंकि मुजफ्फरनगर में हुए दंगे इस बात का सबूत हैं कि क्या कुछ उन दंगों
में घटित हुआ किंतु उन सभी बातों को भुलाकर आगे बढ़ गए लेकिन क्या आगे बढ़ने से उस
समस्या का समाधान हो गया, नहीं हुआ क्योंकि मैं बात कर रहा हूं हालही में चल रही सहारनपुर हिंसा की अगर पिछले दंगों की रिपोर्ट
को सही तरीके से प्रशासन ने देखा होता तो शायद आज ये हालात नहीं होते !
एक बात जो मेरे जहन में हमेशा आती है कि हमारे देश में एक चीज तो आप सभी लोग नोटिस
करते ही होंगे कि जब आतंकी हमले होते हैं तो देश के नेताओं के भाषणों में एक अलग
ही ऊबाल देखने को मिलता है, औऱ इस हमले के पीछे किस संगठन का हाथ है इसका भी पता
जल्द ही चल जाता है तो फिर आपसी दंगों को हमारे लोग जातीय हिंसा का नाम क्यों देते
हैं ? क्यों हमारे देश के राजनेता हिंसा के ठीक बाद एक-दूसरे पर ऊंगली उठाने लगते
हैं, वो ये क्यों नहीं जानते कि इस देश में हमारा काम शांति को बनाए रखने का है और
लोगों को समझाने का है।
बताना चाहूंगा कि
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सहारनपुर अभी भी हिंसा की आग से अलग नहीं हुआ है, अभी भी
लगातार वहां पर हिंसा हो रही है। 23 मई को बसपी सुप्रीमो मायावती के सहारनपुर दौरे के बाद वहां
के हालात और ज्यादा तनावपूर्ण हो गए, मायावती की जनसभा से लौट रहे दलितों पर अटैक किया
गया, जिसमें एक शख्स की मौत हो गई जबकि करीब 15 से ज्यादा लोग घायल हो गए।
इस मामले के बाद लगातार राजनीति गर्मा रही है।
कांग्रेस की
अनुसूचित जाति इकाई के अध्यक्ष के. राजू ने कहा कि "दलित समुदाय के खिलाफ तथाकथित ऊंची जाति के सैकड़ों लोगों ने हिंसा की लेकिन अब तक
सिर्फ 32 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।" सहारनपुर की सबसे चिंताजनक बात यह है कि
प्रशासन ने चुप्पी साध रखी है और मूकदर्शक बनी हुई है न तो वे सुरक्षात्मक कदम उठा
रहे हैं और न ही कानून की बहाली के लिए कोई कार्रवाई कर रहे हैं।"
उप मुख्यमंत्री
केशव मौर्या ने कहा कि सपा और
बसपा जातिवाद को बढ़ावा दे रही है, जिसके कारण दंगे
भड़क रहे हैं, सहारनपुर में हालात बिगड़े हैं, वहीं, बसपा नेता
मायावती भी वहां गई उनके वापस जाने के बाद फिर समाज में अस्थिरता पैदा हो गई।
आइए बताते हैं पूरा
मामला...
सहारनपुर के
शब्बीरपुर गांव में महाराणा प्रताप शोभायात्रा के दौरान हुए एक विवाद ने हिंसक रूप
ले लिया था। इसके बाद विशेष जाति पर दलितों के साथ अत्याचार करने और उनके घर जलाने
का मामला सामने आया था। इस मामले में भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर के खिलाफ केस
दर्ज किया गया था।
इन सब चीजों को देखने के
बाद मन में एक ही सवाल उठता है कि सरकार भले ही किसी की हो लेकिन ये राजनेता इस
हिंसा का हल निकालने को छोड़कर, एक-दूसरे पर बयानबाजी करने से बाज नहीं आएंगे !
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