Tuesday, 26 September 2017

“जल ही जीवन है” जल के बिना जीवन की कल्पना भी मुश्किल है...

ब्रजेश जैन, अंतिम अपडेट : मंगलवार, 26 सितंबर, 2017


पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के अनमोल विचार :
    “यदि हम लोग जल संरक्षण के प्रति गम्भीर नहीं हुए तो तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिये होगा।




जल है तो कल है, बावजूद इसके जल बेवजह बर्बाद किया जाता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जल-संकट का समाधान जल के संरक्षण से ही है। हम हमेशा से सुनते आये हैं जल ही जीवन है। जल के बिना सुनहरे कल की कल्पना नहीं की जा सकती, जीवन के सभी कार्यों का निष्पादन करने के लिये जल की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर उपलब्ध एक बहुमुल्य संसाधन है जल, या यूं कहें कि यही सभी सजीवो के जीने का आधार है जल। धरती का लगभग तीन चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है, किन्तु इसमें से 97% पानी खारा है जो पीने योग्य नहीं है, पीने योग्य पानी की मात्रा सिर्फ 3% है। इसमें भी 2% पानी ग्लेशियर एवं बर्फ के रूप में है। इस प्रकार सही मायने में मात्र 1% पानी ही मानव के उपयोग हेतु उपलब्ध है। एक अनुमान के मुताबिक लगभग 95 लाख लीटर पानी रोज बर्बाद हो रहा है।

नगरीकरण और औद्योगिकीरण की तीव्र गति व बढ़ता प्रदूषण तथा जनसंख्या में लगातार वृद्धि के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। प्रतिवर्ष यह समस्या पहले के मुकाबले और बढ़ती जाती है, लेकिन हम हमेशा यही सोचते हैं बस जैसे तैसे गर्मी का सीजन निकाल जाये बारिश आते ही पानी की समस्या दूर हो जायेगी और यह सोचकर जल सरंक्षण के प्रति बेरुखी अपनाये रहते हैं।

पानी जीवनदाता है, खेती खूब कराता है, पानी पी हम प्यास बुझाते
पानी से बर्तन मंजवाते, कपड़े धोते पानी से, खूब नहाते पानी से
पानी से घर को धुलवाते, आग बुझाते पानी से.


आगामी वर्षों में जल संकट की समस्या और अधिक विकराल हो जाएगी, ऐसा मानना है विश्व आर्थिक मंच का। इसी संस्था की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दुनियाभर में 75 प्रतिशत से ज्यादा लोग पानी की कमी की संकटों से जूझ रहे हैं। 22 मार्च को मनाया जाने वाला विश्व जल दिवसमहज औपचारिकता नहीं है, बल्कि जल संरक्षण का संकल्प लेकर अन्य लोगों को इस संदर्भ में जागरुक करने का एक दिन है।

शुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता और संबंधित ढेरों समस्याओं को जानने के बावजूद देश की बड़ी आबादी जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं है। जहां लोगों को मुश्किल से पानी मिलता है, वहां लोग जल की महत्ता को समझ रहे हैं, लेकिन जिसे बिना किसी परेशानी के जल मिल रहा है, वे ही बेपरवाह नजर आ रहे हैं। आज भी शहरों में फर्श चमकाने, गाड़ी धोने और गैर-जरुरी कार्यों में पानी को निर्ममतापूर्वक बहाया जाता है।

प्रदूषित जल में आर्सेनिक, लौहांस आदि की मात्रा अधिक होती है, जिसे पीने से तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल है। वर्तमान में करीब 1600 जलीय प्रजातियां जल प्रदूषण के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं, जबकि विश्व में करीब 1.10 अरब लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर हैं और साफ पानी के बगैर अपना गुजारा कर रहे हैं।

धरती पर धीरे-धीरे जलाशय का स्तर नीचे गिरता जा रहा है, आने-वाले लगभग 30-40 सालों के बाद एक समय ऐसा भी आयेगा जब हमारी पीढ़ी के लिए धरती की 150 फीट की गहराई मे भी पानी की एक बूंद तक नही मिलेगी। आज, तकरीबन 78 करोड़ लोगों को स्वच्छ पेय जल नहीं मिल पाता और करीब 4000 बच्चे रोजाना गंदे पानी या पर्याप्त स्वच्छता की कमी के कारण मौत के शिकार हो जाते हैं।

ऐसी स्थिति सरकार और आम जनता दोनों के लिए चिंता का विषय है। इस दिशा में अगर त्वरित कदम उठाते हुए सार्थक पहल की जाए तो स्थिति बहुत हद तक नियंत्रण में रखी जा सकती है, अन्यथा अगले कुछ वर्ष हम सबके लिए चुनौतिपूर्ण साबित होंगे।

लोरान आइजली (अमेरिकी विज्ञान लेखक) के विचार :
                                  “हमारी पृथ्वी पर अगर कोई जादू है, तो वह जल है। 

Monday, 18 September 2017

अगर भारत है “सोने की चिड़िया” तो मध्यप्रदेश राज्य को कह सकते हैं “घोटालों की चिड़िया” ये बात कुछ हज़म नहीं हुई, पर हकीकत यही है...


ब्रजेश जैन, अंतिम अपडेट : सोमवार, 18 सितंबर, 2017


मैं किसी पार्टी के खिलाफ ज़हर नहीं उगल रहा हूं मेरे लिए वो तमाम नेता/अधिकारीगण अपराधी हैं जो कि इस घोटाले शब्द का हिस्सा हैं, चाहे वो कांग्रेस, बीजेपी का हो या फिर किसी दूसरी/अन्य पार्टी का, हैं तो सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे, लेकिन झेलता आम इंसान ही है”...

नई दिल्ली : आप सोच रहे होंगे कि मैंने अपने ब्लॉग में इस तरह की आपत्तिजनक टैगलाइन का प्रयोग क्यों किया है, पर मुझे भी बहुत अफसोस हो रहा है, आपको बताते हुए, जोकि आप इस सच्चाई को बखूबी जानते भी हैं, लेकिन वाकई अफसोस हमें करना चाहिए या फिर मध्यप्रदेश सरकार में बैठे उन दागी मंत्रियों/अफसरों को जो ईमानदारी से काम करने वाले नागरिकों को घोटाले में शामिल करने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि उन्हें उकसाते हुए इसका भागीदार भी बनाते हैं, और जब वह ऐसा करने में नाकामयाब होते हैं, तो उनका तबादला या कत्लेआम करा देते हैं...

यही सच्चाई है आप इस पर यकीन करें या फिर...
पिछले कई सालों से इन नेताओं की जुमले बाजी सुनकर मेरे कान में दर्द होने लगा, तो सोचा कि अब थोड़ा दर्द इन्हें भी दे दूं ताकि कुछ एहसास इन्हें भी हो जाए...कि आम आदमी का दर्द कैसा होता है, इसलिए मैंने घोटाले जैसे बड़े विषय पर सच्चाई को आइने पर उतारने की कोशिश की है...हालांकि इस विषय पर बहुत लोगों ने बहुत कुछ लिखा है पर बदलाव फिर भी नहीं आया, लेकिन मैं ऐसा नहीं कहता कि मेरे लिखने से कोई बदलाव आएगा, परंतु किसी के जले पर नमक तो गिरेगा ही...
मैंने इस विषय पर लिखने से पहले इसके बारे में बहुत सोचा, समझा और पढ़ा, तब जाकर इस भयानक सच के बारे में यकीन जल्दी हो गया औऱ सच को जल्द ही जान लिया...यकीन इसलिए हो गया क्योंकि भष्टाचार हमारे समाज का एक हिस्सा बन चुका है और जिस पर लगाम लगाना किसी के वश में नहीं है...
संती-मंत्री का होता है सपोर्ट...

देश में रोज घोटाले होते हैं चाहे वो छोटे हों या फिर बड़े दर्जे के हों, लेकिन जो सामने आ जाते हैं वो घोटाले होते हैं और जो छिप जाते हैं वो फिर कभी सामने नहीं आते, क्योंकि उनके ऊपर किसी संत्री-मंत्री का हाथ होता है, यह बात हम सभी जानते हैं औऱ नेता भी बखूबी जानते हैं। इसके अलावा आपको एक बात से ओर रूबरू कराना चाहूंगा कि अभी तक कई घोटाले सामने आ चुके हैं लेकिन क्या उन घोटालों के पैसे के बारे में किसी नेता या किसी सरकार ने कभी जिक्र किया, जी नहीं क्योंकि वो पैसा तो घोटाले के साथ ही चला गया...कहां गया इसका किसी को भी पता नहीं, या फिर यूं समझा जाएं कि आपस में बांट लिया गया, सरकार जनता से तो हर एक चीज का हिसाब मांगती हैं तो क्या सरकार का फ़र्ज नहीं बनता हिसाब देने का... 

मध्यप्रदेश राज्य है चर्चाओं में...

फिलहाल मैं सिर्फ अपने ब्लॉग में मध्यप्रदेश राज्य की बात कर रहा हूं, क्योंकि घोटालों की वजह से मध्यप्रदेश काफी चर्चाओं में रहा है। भले ही सरकार औऱ उनके मंत्री इन घोटालों की आवाजों को दबा चुके हों, लेकिन मुझे यकीनन बहुत तरस आता है कि एक तरफ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशों से कालाधन वापस लाने की बात करते हैं औऱ दूसरी तरफ उन्हीं के मंत्री खुद कालाबाजारी औऱ अपराधियों को सत्ता में सम्मानपूर्वक बैठाकर उनका गुणगान करने से बाज नहीं आते...

जहां एक तरफ खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कुछ समय पहले विपक्ष में शामिल कांग्रेसी नेता के खिलाफ ज़हर उगलते थे कि वह खनन माफिया हैं और आज उसी खनन माफिया को बीजेपी में शामिल कर मंत्री का पद दे दिया वाह री सत्ता का लोभ...वाकई देश बदल रहा है...अब तो शर्म करो...इसे कहते हैं जनता का भरोसा जीतना...
नीचे मैं कुछ घोटालों का जिक्र कर रहा हूं जिनको काफी समय तक चर्चा में रखा गया और जिनकी वजह से ईमानदार अफसरों के तबादले तक कर दिए गए और तो और कत्लेआम भी करवा दिए गए...लेकिन गुनहगार और घोटाले का पैसा अब भी खुलेआम सलामत है...

नोटबंदी की आड़ में कटनी में हुआ 500 करोड़ से अधिक का काला धन सफेद
पूर्वी मध्यप्रदेश के विजयराघौगढ़ के विधायक और मंत्री संजय पाठक का नाम एक्सिस बैंक में 500 करोड़ से अधिक का काला धन सफेद करने के मामले में सामने आया था, मिली जानकारी के मुताबिक एसपी गौरव तिवारी इस मामले की जड़ों तक पहुंच गए थे। इसमें संजय पाठक और आरएसएस के एक वरिष्ठ नेता की संलिप्तता मिली है। इससे पहले कि मामला अधिक तूल पकड़ता संजय पाठक ने सीएम शिवराज सिंह चौहान के माध्यम से कटनी के एसपी गौरव तिवारी का ट्रांसफर करवा दिया। कटनी में एसपी गौरव तिवारी का स्थानांतरण निरस्त करने की मांग को लेकर आंदोलन भी चला लेकिन एसपी गौरव तिवारी के ट्रांसफर के साथ ही यह आंदोलन भी दबा दिया गया।

बता दें कि संजय पाठक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, उच्च शिक्षा, सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण राज्यमंत्री हैं। माइनिंग कारोबारी संजय पाठक को कुछ साल पहले तक बीजेपी के नेता-कार्यकर्ता माइनिंग माफिया कहते थे। संजय पाठक ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामा और हाल ही में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें मंत्री बना दिया।

बताया जाता है कि संजय पाठक पर जबलपुर के समीप सीहोरा में अवैध खनन करने के आरोप भी लगे थे। उनकी लीज वर्ष 2007 में ही खत्म हो गई थी, जबकि उन्होंने सन 2012 तक अवैध खनन करना जारी रखा। अब कोई भला सरकार के सपोर्ट के बिना ऐसा कैसे कर सकता है...

व्यापमं घोटाला

व्यापमं भर्ती घोटाला मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा भर्ती घोटाला है, खुद सीएम शिवराज सिंह विधानसभा में स्वीकार कर चुके हैं कि 1000 फर्जी भर्तियां की गईं। इस घोटाले की आंच सीएम शिवराज तक भी पहंच चुकी थी। इस घोटाले में कई बड़े नाम सामने आए जिनमें कुछ लोग तो सलाखों के पीछे पहुंचे और कुछ लोगों की मौत हो गई लेकिन अभी तक इस घोटाले का मास्टरमाइंड हाथ नहीं आया और तो और जिन लोगों की मौत रहस्यमय तरीके से हुई उनकी वजह और कातिलों का भी कोई सुराग तक नही मिला। इस घोटाले की जांच पहले एसटीएफ व एसआईटी ने की, 2400 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज हुए, 2100 लोग जेल गए और अब दो साल से जांच सीबीआई के पास है, दुर्भाग्यपूर्ण यह कि अब तक इस मामले से जुड़े 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है...अब इसे क्या समझा जाये...


राशन महाघोटाला

मध्य प्रदेश के रतलाम में कलेक्टर बी. चंद्रशेखर के तबादले के बाद बहुचर्चित राशन महाघोटाला अब फाइलों में दब गया है, यह वही बहुचर्चित महाघोटाला है जिसमें हर माह एक करोड़ रूपए का अनाज, राशन माफिया खा रहे थे, इस बहुचर्चित घोटाले का खुलासा तत्कालीन कलेक्टर बी. चंद्रशेखर ने इसी साल मई महीने में किया था। कलेक्टर ने जिले की सभी राशन दुकानों की जांच के आदेश जारी किये थे लेकिन जांच तो दूर, अधिकारी इस महा घोटाले को दबाने में लगे हैं। आलम ये है इस फर्जीवाड़े में अब तक महज एक एफआईआर दर्ज हुई है, जबकि दोषी अफसर और असली गुनहगार अब भी कार्रवाई से कोसो दूर है। गड़बड़ियां मिलने पर कलेक्टर ने शहर की सभी 63 दुकानों की जांच के आदेश दिए थे, लेकिन ये जांच अब सपना बन कर रह गई है...



शराब ठेकों में घोटाला

शराब ठेकों में 41 करोड़ रुपए से ज्यादा का घोटाला सामने आने के बाद वाणिज्यिक कर विभाग ने कई अधिकारियों के तबादले कर दिए। विभागीय मंत्री जयंत मलैया ने 6 अधिकारियों को निलंबित करने के साथ 20 के तबादले करने की पुष्टि भी की थी। अब यह बतायें कि क्या तबादले और निलंबित करने से 41 करोड़ रुपये सरकार के खाते में आए या फिर उन अपराधियों को क्या सज़ा दी गई...सरकार ने आसानी से इस घोटाले से परदा झाड़ लिया...



भोपाल के नगर निगमकी वाहन शाखा में हुआ 200 करोड़ रुपये का घोटाला

मध्य प्रदेश के भोपाल नगर निगम में हुए 200 करोड़ रुपये के घोटाले को उजागर करने वाली ईमानदार आयुक्त छवि भारद्वाज का तबादला कर दिया गया, भोपाल नगर निगम की वाहन शाखा में 200 करोड़ रुपये का घोटाले को सामने लाने वाली आयुक्त छवि भारद्वाज को अचानक छुट्टी के दिन हटाना, इस बात का प्रमाण है कि इस घोटाले में शामिल लोगों को मुख्यमंत्री साफतौर पर बचाना चाहते हैं...



मध्यप्रदेश राजस्व विभाग की महिला अधिकारी अमिता सिंह तोमर ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा बार-बार किए जा रहे अपने तबादले से परेशान होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है। तहसीलदार अमिता का दो दिन पहले ही राजगढ़ जिले की ब्यावरा तहसील से सीधी जिले में तबादला किया गया है। अमिता सिंह तोमर ने आरोप लगाया कि ब्यावरा में उन्होंने जिन प्रभावशाली लोगों का अतिक्रमण हटाया था, उनके कहने पर सरकार मेरा बार-बार तबादला कर मुझे परेशान कर रही है। मुझे मानसिक रूप से परेशान किया जा रहा है' शिवराज सरकार में महिलाओं पर यह कैसा अत्याचार हो रहा है, आखिर क्यों आंख बंद कर बैठी है शिवराज सरकार...एक तरफ सरकार लाड़ली योजना और बेटी बचाओ की बात करती है और दूसरी तरफ मेरे साथ इस तरह की नाइंसाफी कर रही है...आखिरकार कब तक और क्यों...

आंगनबाड़ी के नाम पर वहां पढ़ने के लिए आने वाले बच्चों को पोषण आहार वितरण किया जाता है। बता दें कि सरकार के साथ कंपनियों का करार 31 मार्च 2017 को ही खत्म हो चुका है। मगर स्थगन की आड़ में यह कारोबार अब तक जारी रहा। प्रदेश में हर साल कुपोषित बच्चों के पोषण आहार पर 1200 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। यानी कि आंगनबाड़ियों के पोषण आहार वितरण की बदौलत कपनियां अच्छी खासी कमाई करने में लगी हुई हैं।

वैसे तो सरकार एक अच्छा और नेक काम कर रही है लेकिन सालों से जो लोग पोषण आहार की सप्लाई का काम कर रहे हैं उनकी जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए। यह भी देखा जाना चाहिए कि उनको किनका संरक्षण प्राप्त था। अगर देश में सीबीआई सो नहीं रही तो वो इस सच्चाई को वाकई उजागर करेगी...

भ्रष्टाचारियों के साथ काम कर रही मध्यप्रदेश सरकार...
पिछले चार साल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो भी कदम उठाए हैं, वह भ्रष्टाचारियों को बचाने, उन्हें अच्छी पोस्टिंग देने और घोटाले उजागर करने वाले अधिकारियों को हटाने के लिए उठाए हैं। कटनी के पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी हों या सतना नगर-निगम के आयुक्त कथूरिया की पोस्टिंग हों, ये दोनों मामले मुख्यमंत्री की कथनी और करनी में अंतर के सबूत हैं। इसी तरह श्योपुर में एडीएम वीरेंद्र कुमार को इसलिए हटाया गया, क्योंकि उन्होंने 321 बीघा सरकारी जमीन पर अवैध रूप से कब्जा किए लोगों को उस जमीन से हटा दिया। सरकार को उनकी यह कार्रवाई इसलिए रास नहीं आई, क्योंकि जिनके कब्जे से सरकारी जमीन वापस ली गई, वे भाजपा के हमदर्द थे...



"इन तथ्यों को मैंने विभिन्न-विभिन्न सूत्रों से बाहर निकाला है, इसमें जो भी सच्चाई मुझे नज़र आई उसे अपने लेख के माध्यम से साझा किया है। इस ब्लॉग के अंतर्गत किसी पार्टी विशेष को निशाना नहीं बनाया गया है, जिस तरह से प्रदेश में लगातार भ्रष्टाचार प्रगति की ओर अग्रसर है, उसे रोकने बावत् मेरी तरफ से एक छोटी सी पहल की जा रही है...अगर आपको लगता है मैंने जिस तरीके से इस लेख को आपके सामने रखा है तो कृपया आप लोग राज्य को समृद्ध और प्रगतिशील बनाने के लिए अपनी राय और कमेंट यहां दे सकते हैं"...

Thursday, 25 May 2017

आतंकियों का मनोबल बढ़ाने में जातीय हिंसा की हकीकत... “लोकंतत्र की हत्या और प्रजातंत्र की परीक्षा”




ब्रजेश जैनअंतिम अपडेट: गुरुवार मई 252017


नई दिल्ली : भारत एक ऐसा देश हैं जहां आजादी से पहले ही जाति शब्द के मायने तय हो चुके थे, जाति एक ऐसा शब्द है जो हर तरह के मजहब को दर्शाता है। जाति वो शब्द है जिसके कारण आपसी भेदभाव, दंगे-फसाद और तो और खूनी-संघर्ष जैसे भयानक चेहरे समाज के सामने देखने को मिलते हैं।

मुझे बताते हुए किसी तरह का आश्चर्य नहीं हो रहा है कि हमारे हिंदुस्तान की जड़े इतनी कमजोर हो चुकी हैं कि आपसी तनाव और झगड़े की वजह से बाहरी ताकतें पूरी तरह से हम पर हावी हो जाती हैं, क्योंकि हमारे देश की जनता बिना कुछ सोचे समझे मारकाट पर उतर आती है, और उसमें घी डालने का काम सफेदी पोशाक पहनने वाले ये राजनेता करते हैं। नेता अंदरुनी मुद्दों को भयानक रुप देने का काम करते हैं, लोगों को भड़काने का काम करते हैं, अपने कारनामों को छुपाने का काम करते हैं और तो और एक नया आतंकी पैदा करने का काम भी करते हैं।

वोट बैंक की राजनीति करने वाले कुछ राजनेताओं का मकसद सिर्फ समाज में अपवाद पैदा करना है। चाहे सरकार किसी की भी हो उन्हें सिर्फ और सिर्फ अपने वोटबैंक और कुर्सी की परवाह होती है।

देश में पहले भी कई बड़े दंगे हो चुके हैं चाहे वो देश की भलाई के लिए क्यों ना हों, लेकिन नुकसान हर छोटे-बड़े तबके के लोगों का ही होता है। कुछ समय तक तो प्रशासन चुप बैठता है और जब हालात काबू से बाहर हो जाते हैं तो उन्हें काबू में लाने के लिए धाराएं लगाई जाने लगती है। लोगों पर आंसू गैस के गोले छोड़े जाते हैं, डंडों से मारा जाता है लेकिन इन सबसे अलग किसी ने जानने की कोशिश ही नहीं कि आखिर ये सबकुछ क्यों और किसकी वजह से हो रहा है।

 यही तो हमारे देश के लोगों का दुर्भाग्य है कि जिन महापुरुषों ने हमारी आने वाली पीढ़ियों को बाहरी ताकतों से बचाने के लिए अपने प्राण तक की परवाह नहीं कि वहीं लोग आज उनकी मूर्तियों और नेताओं के भड़काऊ भाषणों की वजह से आपस में एक-दूसरे को अपना दुश्मन समझ रहे हैं। लेकिन इस देश के लोगों को इतनी समझ कहां है कि वो अपने ही लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरों को क्या नसीहत दें।

बताते हुए बहुत दु:ख हो रहा है कि राजनीतिक पार्टियों का काम देश और समाज को शांतिपूर्ण तरीके से चलाने का है लेकिन क्या पार्टियां अपने इस काम को बखूबी तरीके से पूरा कर रही हैं, नहीं क्योंकि मुजफ्फरनगर में हुए दंगे इस बात का सबूत हैं कि क्या कुछ उन दंगों में घटित हुआ किंतु उन सभी बातों को भुलाकर आगे बढ़ गए लेकिन क्या आगे बढ़ने से उस समस्या का समाधान हो गया, नहीं हुआ क्योंकि मैं बात कर रहा हूं हालही में चल रही सहारनपुर हिंसा की अगर पिछले दंगों की रिपोर्ट को सही तरीके से प्रशासन ने देखा होता तो शायद आज ये हालात नहीं होते !

एक बात जो मेरे जहन में हमेशा आती है कि हमारे देश में एक चीज तो आप सभी लोग नोटिस करते ही होंगे कि जब आतंकी हमले होते हैं तो देश के नेताओं के भाषणों में एक अलग ही ऊबाल देखने को मिलता है, औऱ इस हमले के पीछे किस संगठन का हाथ है इसका भी पता जल्द ही चल जाता है तो फिर आपसी दंगों को हमारे लोग जातीय हिंसा का नाम क्यों देते हैं ? क्यों हमारे देश के राजनेता हिंसा के ठीक बाद एक-दूसरे पर ऊंगली उठाने लगते हैं, वो ये क्यों नहीं जानते कि इस देश में हमारा काम शांति को बनाए रखने का है और लोगों को समझाने का है।

बताना चाहूंगा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सहारनपुर अभी भी हिंसा की आग से अलग नहीं हुआ है, अभी भी लगातार वहां पर हिंसा हो रही है। 23 मई को बसपी सुप्रीमो मायावती के सहारनपुर दौरे के बाद वहां के हालात और ज्यादा तनावपूर्ण हो गए, मायावती की जनसभा से लौट रहे दलितों पर अटैक किया गया, जिसमें एक शख्स की मौत हो गई जबकि करीब 15 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इस मामले के बाद लगातार राजनीति गर्मा रही है।

कांग्रेस की अनुसूचित जाति इकाई के अध्यक्ष के. राजू ने कहा कि "दलित समुदाय के खिलाफ तथाकथित ऊंची जाति के सैकड़ों लोगों ने हिंसा की लेकिन अब तक सिर्फ 32 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।" सहारनपुर की सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रशासन ने चुप्पी साध रखी है और मूकदर्शक बनी हुई है न तो वे सुरक्षात्मक कदम उठा रहे हैं और न ही कानून की बहाली के लिए कोई कार्रवाई कर रहे हैं।"

उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या ने कहा कि सपा और बसपा जातिवाद को बढ़ावा दे रही है, जिसके कारण दंगे भड़क रहे हैं, सहारनपुर में हालात बिगड़े हैं, वहीं, बसपा नेता मायावती भी वहां गई उनके वापस जाने के बाद फिर समाज में अस्थिरता पैदा हो गई।

आइए बताते हैं पूरा मामला...
सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में महाराणा प्रताप शोभायात्रा के दौरान हुए एक विवाद ने हिंसक रूप ले लिया था। इसके बाद विशेष जाति पर दलितों के साथ अत्याचार करने और उनके घर जलाने का मामला सामने आया था। इस मामले में भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर के खिलाफ केस दर्ज किया गया था।


इन सब चीजों को देखने के बाद मन में एक ही सवाल उठता है कि सरकार भले ही किसी की हो लेकिन ये राजनेता इस हिंसा का हल निकालने को छोड़कर, एक-दूसरे पर बयानबाजी करने से बाज नहीं आएंगे !

Friday, 21 April 2017

10 साल की उम्र में ये मासूम कैसे भरता है परिवार का पेट, दास्तान सुन आ गए मेरी आंखों से आंसू

ब्रजेश जैनअंतिम अपडेट: शुक्रवार अप्रैल 21, 2017 05:00 PM IST: न्यूजप्वाइंट टीवी

आज सुबह मैं अपने घर से ऑफिस के लिए रवाना हुआ और नोएडा के ममूरा चौक पहुंचकर रोजाना की तरह ही ऑफिस के लिए रिक्शा लेने गया तब मेरी नजर अचानक रिक्शे पर बैठे एक मासूम बच्चे पर पड़ी पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन फिर गुस्से को शांत कर हकीकत जानने का मन किया।


फिर क्या था मैंने ऑफिस जाने के लिए इस बच्चे की मदद ली और रिक्शे पर सवार हो गया। थोड़ी दूर पहुंचते ही मैंने बच्चे से उसका नाम पूछा, बच्चे ने अपना नाम फारूख खान बताया फिर क्या था मैंने उसके बारे में गहराई से जानने की कोशिश की उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा तो फारूख का जवाब था मैं अनपढ़ हूं तब मैंने उससे कहा कि तुम इतनी कम उम्र में रिक्शा क्यों चलाते हो अपनी पढ़ाई पर ध्यान क्यों नहीं देते तो फारुख ने बताया कि वह मजबूरी में रिक्शा चलाता है इसके बाद तो उसका जवाब मुझे झकझोर देने वाला लगा जब फारुख ने बताया कि वो अपने छोटे भाई को पढ़ाना चाहता है जो कि अभी चौथी कक्षा में है और अपने माता पिता की मदद कर रहा है। 

फिर मैंने फारुख से उसके परिवार के बारे में पूछा तो उसने कहा कि मेरे पापा एक मजदूर हैं जो ईंटें और पत्थर चुनने का काम करते हैं और मेरी मां घर में रहकर चूल्हा जलाती है और हम लोगों को दो वक्त का खाना खिलाती है।



इसके बाद तो मैं फारुख से कुछ और पूछ ही नहीं सका क्योंकि मेरे अंदर और इतनी हिम्मत नहीं थी। 

इसके बाद क्या था मैं और फारुख एक पल के लिए गमों को भुलाकर खुशी-खुशी एक जगह गन्ने का जूस पीने उतर गए और कुछ तस्वीरें भी हमने एक साथ क्लिक की। जिन तस्वीरों को मैंने आज आप सभी दोस्तों के साथ साझा किया है।

फारूख खान से मिलकर मुझे आज बहुत अच्छा लगा और इस बात का अंदेशा हुआ कि किसी का दर्द हमसे भी बड़ा हो सकता है।

"धन्यवाद फारूख खान मेरे साथ अच्छा वक्त बिताने के लिए"



Friday, 17 March 2017

उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री की तलाश जारी....

ब्रजेश जैनअंतिम अपडेट: शुक्रवार मार्च 17, 2017 05:04 PM IST: न्यूजप्वाइंट टीवी



यूपी के लिए सीएम की तलाश जारी...

उत्तर प्रदेश की राजनीति शुरु से ही बड़ी दिलचस्प रही है, राजनीति की शुरुआत ही उत्तर प्रदेश से हुई है लेकिन इस बार समय बदल गया है, मुद्दे बदल गए हैं, मायने बदल गए हैं और चेहरे भी बदल गए हैं। लेकिन अभी भी कुछ ऐसा है जो नहीं बदला.....

हम बात कर रहे हैं विकास की, बात हो रही है भ्रष्टाचार को खत्म करने की, काले धन को देश में लाने की, बिजली-पानी और सड़कों की, स्मार्ट सिटी बनाने की लेकिन क्या कोई बात कर रहा है उन भूखे और नंगे लोगों की जिन्हें दो वक्त की रोटी और पहनने को कपड़े नहीं मिलते, प्यासे को पानी नहीं मिलता या फिर कहें कि किसान को सूखे और कर्ज से मुक्ति नहीं मिलती।

लेकिन इन सब बातों को भुला दें तो अभी फिलहाल बात हो रही है उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री की कि आखिर कौन सा चेहरा हो जो इस राज्य की जनता के बीच का हो उनकी जाति का हो जो उनकी समस्यों को समझ सके जो उनके बीच बैठ सके।

पर मैं तो इन सभी बातों से परे हूं, इन सभी बातों को अगर दरकिनार कर दिया जाएं तो पर्दे के पीछे की बात सामने आती है कि पार्टी के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में दोबारा उत्तर प्रदेश की जनता का दिल जीतना और यूपी में एक बड़े अंतर से जीत हासिल कर सरकार बनाना है।

आगे पढ़िए....भाजपा और संघ के बीच यूपी सीएम को लेकर क्या हो रही है चर्चा ?

सीएम के लिए संघ की राय अहम
संघ की राय के बगैर मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति मिलने की कोई संभावना नहीं है। संघ यह भी चाहता है कि पिछड़े और दलित वर्ग को भी नाराज नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए संतुलन बनाने के लिए पिछड़ी और दलित वर्ग से एक-एक डिप्टी सीएम भी बनाए जा सकते हैं। कुल मिलाकर यूपी के सीएम पद के लिए फैसला 20 मार्च से पहले होने की संभावना कम ही दिख रही है।

भाजपा के पास विकल्पों का थोड़ा अभाव
यूपी में मुख्यमंत्री का नाम तय करने के लिए भाजपा नेतृत्व को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। सूत्रों के अनुसार संघ ने सुझाव दिया कि यूपी में राजनीतिक रूप से अनुभवी व प्रशासनिक क्षमता वाले नेता को ही कमान सौंपी जानी चाहिए।

"हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र के पिछले चुनावों में बिना सीएम कैंडिडेट के उतरने और सफल होने का फॉर्मूला भाजपा नेतृत्व के जेहन में साफतौर पर दिखाई देता है, वैसे भी यूपी में पार्टी के पास विकल्पों का थोड़ा अभाव दिखाई दे रहा है।" तभी तो यूपी के सीएम का चुनाव करने के लिए पार्टी इतना समय ले रही है।

कब होगा यूपी के नए सीएम का ऐलान 
उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री का नाम शनिवार को तय हो जाएगा। इस संबंध में पार्टी के प्रदेश अध्यशक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि 18 मार्च को शाम पांच बजे विधायक दल की बैठक के बाद मुख्ययमंत्री के नाम का ऐलान किया जाएगा। उसके बाद 19 तारीख को शाम पांच बजे से शपथ ग्रहण समारोह होगा। प्रदेश लखनऊ में शनिवार शाम को बीजेपी के नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक होगी, जिसमें राज्य के नए मुख्यमंत्री का नाम तय किया जाएगा।

सबसे बड़ी चुनौती है मुख्यमंत्री का चयन
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में तीन चौथाई बहुमत से जीत हासिल करने के बाद बीजेपी के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री के रूप में सर्वसम्मत नेता का चयन करने की है। विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने मुख्यमंत्री के रूप में कोई चेहरा पेश नहीं किया था। पार्टी ने नरेंद्र मोदी की अगुवाई में ही मतदाताओं के समक्ष जाने का फैसला किया था।

कौन सा चेहरा सबसे आगे
पार्टी सूत्रों की मानें तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह (पूर्व सीएम उत्तर प्रदेश) और मंत्री मनोज सिन्हा, आरएसएस के केंद्रीय संगठन महामंत्री राम लाल इसके अलावा कानपुर से विधायक सतीश महाना, दिनेश शर्मा और सुरेश खन्ना सीएम बनने की दौड़ में शामिल हैं।

आइए जानते हैं इन दावेदारों के मजबूत और कमजोर पक्ष के बारे में :-


राजनाथ सिंह (अनुभवी नेता)
गृहमंत्री राजनाथ सिंह का अनुभव बहुत ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है, मालूम हो कि राजनाथ सिंह इससे पहले यूपी के सीएम रह चुके हैं और उन्हें यहाँ कि सत्ता चलने का काफी गहरा अनुभव भी है। इसीलिए संघ राजनाथ सिंह के नाम को यूपी के सीएम के लिए अपनी पहली पसंद मान रहा है।

मनोज सिन्हा (मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री)
गृहमंत्री राजनाथ सिंह के करीबी माने जाते हैं और पूर्वांचल से आते हैं। पूर्वांचल पर पार्टी का सबसे ज्यादा फोकस रहा है। खुद पीएम मोदी पूर्वांचल में जीत को पार्टी के लिए सत्ता की चाबी मानते हैं। वैसे रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के काम की तारीफ पीएम मोदी भी खासी करते रहे हैं।

लंबे समय से बीजेपी से जुड़े रहे हैं, 1996, 1999 और 2014 में लोकसभा सांसद के रूप में चुनाव जीत चुके हैं। इस समय पूर्वी यूपी की गाजीपुर संसदीय सीट से सांसद हैं। उनकी संसदीय सीट से विधानसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों में शानदार प्रदर्शन किया है।
आईआईटी बीएचयू से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक और एमटेक की डिग्री हासिल की है। मोदी कैबिनेट में रेल राज्य मंत्री के तौर पर काम कर रहे हैं। पीएम मोदी के बेहद करीबी बी हैं। प्रबंधन में माहिर माने जाते हैं, भूमिहार वर्ग से आते हैं जिनकी संख्याद पूर्वी यूपी के कुछ जिलों तक ही सीमित है।

RSS के केंद्रीय संगठन महामंत्री राम लाल (संगठन के संकटमोचक)
संघ और भाजपा के बीच पुल का काम यही करते हैं। रामलाल पश्चिम यूपी के प्रचारक भी रह चुके हैं। यूपी की नस-नस से वाकिफ हैं। संघ व भाजपा इन्हें संगठन का संकटमोचक मानता है। परेशानी भरे सूबों को संभालने के लिए हमेशा मोर्चे पर लगाया जाता है। तेजतर्रार व डिलीवरी देने वाले शख्स हैं।





सतीश महाना (प्रधानमंत्री से रिश्ता काफी पुराना है)
कानपुर से विधायक का चुनाव जीते हैं। क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखने वाले निर्विवादित नेता हैं। लगातार छह बार विधायक रहे हैं। महाना और प्रधानमंत्री का परिचय और रिश्ता काफी पुराना है। सहाना में संगठनात्मक क्षमता कूट-कूट कर भरी है। यूपी सीएम के लिए सतीश महाना का नाम चर्चाओं में है।

डॉ. दिनेश शर्मा- (पीएम और अमित शाह के करीबी)
फिलहाल लखनऊ के मेयर के अलावा बीजेपी के राष्ट्रीह उपाध्यक्ष का पद भी संभाल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का भरोसा हासिल है। ब्राह्मण समाज से आते हैं चूंकि केंद्र में प्रधानमंत्री के रूप में ओबीसी वर्ग के नरेंद्र मोदी मुखिया हैं, ऐसे में इस बात की चर्चा है कि सवर्ण वर्ग से
किसी को यूपी का सीएम बनाया जा सकता है। डॉ. दिनेश शर्मा इस लिहाज से फिट बैठते हैं. सरल स्वनभाव के कारण हर किसी के लिए स्वीकार्य हो सकते हैं। 

सुरेश खन्ना (आठवीं बार विधायक चुने गए हैं)
यूपी की शाहजहांपुर सीट से आठ बार विधानसभा चुनाव जीते हैं, इस बार भी सपा प्रत्याशी को हराकर विधायक बने हैं। छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं, कल्याण सिंह के नेतृत्वन में यूपी में बनी बीजेपी सरकार में मंत्री रह चुके हैं। जमीनी नेता की छवि है, यही कारण है कि करीब तीन दशक से मुस्लिम बहुत सीट से विधायक चुने जाते रहे हैं। 

अगर कुछ देर के लिए इन सभी चेहरों को दरकिनार कर दिया जाए तो कहीं न कहीं संघ और बीजेपी के लिए यह तय कर पाना एक बड़ी चुनौती होगी कि यूपी जैसे राज्य को विकास की राह पर आगे बढ़ाने में कौन सा ऐसा चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्मीदों पर खरा उतरेगा ??