Thursday, 27 September 2018

मुनि सुधा सागर के आराध्य श्री गुरु तारण स्वामी और रचित विशुद्ध आध्यात्मिक ग्रंथों के खिलाफ बिगड़ते बोल...


तारण पंत ने जमकर की आलोचना, जिनवाणी और सभी टी.वी. चैनलों पर प्रसारित मुनि सुधा सागर के प्रवचनों को बैन किया जाए


जब रक्षक ही भक्षक बन जाए, तब वह दिन दूर नहीं जब जैन धर्म की चारों तरफ आलोचना होना निश्चित है। क्योंकि एक साधू का कार्य सभी धर्म बंधुओं को संगठित करने का होता है न कि उसका विभाजन करने का और मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि मुनि सुधा सागर लगातार तारण पंत के गुरूवर के बारे में अनाप-शनाप निंदा करने से बाज नहीं आ रहे हैं। दिनांक 24 सितंबर 2018 को मुनि सुधा सागर द्वारा तारण स्वामी के विरोध में दिए गए वक्तव्य पर संपूर्ण तारण समाज आहत है। मुनि सुधा सागर ने जिनवाणी टी.वी. चैनल पर जिज्ञासा समाधान के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा तारण स्वामी के सबध में पूछे गये प्रश्न के समाधान में मुनि सुधा सागर ने मिथ्या एंव मनगढन्त बातों से आर्चाय प्रवर श्रीमद् जिन तारण स्वामी के बारे में अनर्गल प्रलाप किया है। वह एक मुनि के लिये शोभनीय नहीं वरन् निंदनीय है।

आखिर ऐसा क्या कहा मुनि सुधा सागर ने...जानें
मुनि सुधा सागर ने पुनः एक बार तारण स्वामी को एक द्रव्य खाने वाला तथा 14 पुस्तकें लिखकर उन्हें जिनवाणी का नाम देने वाला बताया। साथ ही आर्चाय प्रवर श्रीमद् जिन तारण स्वामी द्वारा रचित 14 ग्रन्थों, जिसे तारण पंथी अध्यात्मवाणी / जिनवाणी को जिनेन्द्र भगवान की शुद्व देशना मानते हुये पूजते हैं उस पवित्र ग्रन्थ को अपूज्य एवं मात्र एक किताब की संज्ञा दे डाली।।
  
मुनि सुधा सागर ने पहले भी कई बार गुरुवर श्री 108 तारण तरण मंडलाचार्य महाराज को लेकर भद्दी टिप्पणियां की हैं। जिसकी वजह से जैन समाज में आक्रोश की भावना प्रकट होने लगी है। ये वही जैन समाज है जिसने कभी हिंसा का रास्ता नहीं अपनाया औऱ हमेशा अहिंसा को ही अपना परम धर्म माना है।

मुनि सुधा सागर की वर्षावास ब्रह्मचारी बसंत जी महाराज और आत्मानंद महाराज जी ने भी की कड़ी आलोचना
मुनि सुधा सागर द्वारा की गई अभद्र टिप्पणी पर वर्षावास ब्रह्मचारी बसंत जी महाराज ने कहा कि अगर तुम प्रशंसा नहीं कर सकते तो तुम्हें बुराई करने का भी कोई अधिकार नहीं है। 

वहीं दूसरी तरफ आत्मानंद जी महाराज कहते हैं कि आचार्य तो बहुत हैं लेकिन मंडलाचार्य कोई नहीं हैं, अगर कोई मडंलाचार्य हैं तो सोलहवीं शताब्दी के महान अध्यात्मवादी संत तारण तरण हैं।

मुनि सुधा सागर ने 05 वर्ष पूर्व जबलपुर में हिन्दू समाज पर की थी अभद्र टिप्पणी
मुनि सुधा सागर ने 05 वर्ष पूर्व जबलपुर में जब अपने एक प्रवचनों के दौरान हिन्दू समाज को दीपावली में लाई लावा चढ़ाने पर बोला था कि यह मुर्दो पर चढ़ाई जाती है तथा आर्चाय प्रवर श्रीमद् जिन तारण स्वामी को मन्दिर की द्रव्य चुराकर खाने वाले बोला था उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप तारण पंथ के कुछ श्रेष्ठिजन जब मुनि जी के पास गये और उनसे अनुरोध करके उक्त वचनों का खण्डन करने को बोला तो उन्होंने अपमानजक भाषा बोलकर श्रेष्ठियों को भी अपमानित किया किन्तु इसके विपरीत जब हिन्दू समाज के लोग उग्रता के साथ उनके पास विरोध करने पहुंचे तो उन्होंने हिन्दू समाज से मांफी मांग कर भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति न करने का वचन दिया था।

मुनि सुधा सागर ने ललितपुर में हनुमान जी को कामदेव बताया था
ललितपुर में अपने प्रवास के दौरान मुनि सुधा सागर ने हनुमान जी को कामदेव बताते हुए उनकी अनेकों रानियां होने का दावा किया था, जिस पर हिन्दू संगठनों ने इनकी सभा में उत्पात मचाया और प्रशासन को वहां शांति व्यवस्था कायम करनी पड़ी तो वहां भी इनके द्वारा मांफी मांग कर अपना पल्ला झाड़ा गया।

मुनि सुधा सागर को नहीं है 14 ग्रन्थों का सही ज्ञान
जो व्यक्ति मिथ्या धारणायें पालता है तो उसका यही हाल होता है, यदि उन्होंने बिना किसी पूर्वाग्रह के 14 गर्न्थो का अध्ययन किया होता, तो निश्चय ही उनके ह्रदय का रूपांतरण होता। यदि दृष्टि ही मिथ्या है तो व्यक्ति कितनी भी ऊंचाई पर पहुंच जाए वह गिद्ध की भांति ही रहता है। मुनि सुधा सागर जी का भी यही हाल है। वे नाममात्र के मुनि हैं।

मुनि सुधा सागर खुद देते हैं इस तरह के उपदेश
मुनि सुधा सागर जी उपदेश देते हैं  कि मुनि की निंदा करना महापाप है। तारण स्वामी भी मंडलाचार्य पद पर आसीन थे तो क्या मुनि सुधा सागर को यह पाप नहीं लगेगा।

मुनि सुधा सागर के खिलाफ करेंगे शिकायत दर्ज
इस संदर्भ में इतिहास रत्नाकर पूज्य श्री बाल ब्रह्मचारी बसंत जी महाराज एवं महासभा न्यास के पदाधिकारियों के बीच चर्चा के उपरांत महाराज जी के निर्देशानुसार एक शिकायत पत्र तैयार किया गया है। जिसमें समाज के सभी बंधुओं से आग्रह किया गया है कि इस पत्र में लिखित भाषा के अनुरूप ही आप स्थानीय चैत्यालय समिति के लेटर पैड पर समस्त पदाधिकारियों एवं सामाजिक सदस्यों के हस्ताक्षर करा कर महासभा न्यास के महामंत्री के पते पर कोरियर के द्वारा अतिशीघ्र भेंजें जिससे बिना किसी देरी के आगे की कार्यवाही पूर्ण की जा सके।

तारण पंथी क्या कहते हैं मुनि सुधा सागर के बारे में, यहां पढ़ें...

जब व्यक्ति की दृष्टि मिथ्यात से ग्रसित होती है तब ही वह निंदा का मार्ग अपनाता है। एक मुनि कभी सम्यक दृष्टि मुनिराज पर कलंक नहीं लगाता है। लगता है सुधा सागर मुनि पद की गरिमा क्या है ये नहीं जानते हैं। सुधासागर जी को अपने ज्ञान का अजीर्ण हो रहा है। ऐसे मुनि जिनशासन के मुनि कहलाने योग्य नहीं हैं। ये चमत्कारों पर विश्वास करते हैं। पांच वर्ष पहले भी इनके द्वारा ऐसे ही व्यक्तव्य दिए गए थे। यदि तब हम सब एकजुट होकर उनका विरोध करते तो आज पुन: ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती।

हम सब को एक होकर वैधानिक चेतावनी देना चाहिये तथा हमारी भावनाएं आहत हुई हैं, इसलिये हमारे पंथ से वे मांफी मांगे। कभी दूसरे पंथ के शिविर हमारे चैत्यालयों में न लगें, तारण पन्थ के ही शिविर लगें। सुधासागर जी को भी कोई हक नहीं है कि बार
-बार हमारे गुरू महाराज की जिनवानी जी की निंदा करें। आप होते कौन है हमारे गुरू महाराज पर उंगली उठाने बाले, आप हमारे गुरू महाराज के बारे में जानते क्या हैं ?

आज का बड़ा सवाल ? अपना जवाब हमें जरूर भेजें
क्या मुनि सुधा सागर द्वारा दिया गया अभद्र बयान एक मुनि के लिये शोभनीय है, क्या वे मुनिपद के योग्य हो सकते हैं ?


16 comments:

  1. Niii muni sudhasagar munipad ke yugy ni haw

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  2. ये अपराध किया उन्होंने

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  3. Vastra kaa tyaag kar dene se koi mini nhi ban jaata .
    Man me to dusro ke lie male bhara hai...

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  4. Sudha sagar maharaj ka nishedh hai...
    Guru maharaj k bare mai galat bayanbaji par rahe hai....sudhasagar apne app ko gyani samajh rahe hai...

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  5. Nahi muni sudhasagar munipad ke yugy ni hai.
    इनको मुनि कहने मे agyaan और मिथात्‍व का दोष लगता है.
    जिनने खुद मिथात्‍व सिद्धि के अधर पर और भोली भाली जनता को डरा धमकाकर अपने नाम स्थापित किया और अपने को पूजबाते हैं।
    यह कैसे जिन लिंगगी संत है?

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  6. सुधासागर नाम के सुधासागर हैं क्यौकि उनमें न तो सुधा जैसी मिठास है और न सागर जैसी गहराई। यह तो बहिरंग से मुनि हैं अंतरंग से जो मुनि होता है उनका आचरण इस प्रकार का विलकुल नहीं होता। इनके पास तो महात्मा जैसा आचरण भी नहीं जो कहते हैं वुरा मत देखो वुरा मत बोलो

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  7. 14 grantho ki aur jinvani ki abinay ki hai

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  8. Jai banjo jinshashan jaibanto gurudev taranpanth & taran swami ji

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  9. पूज्य मुनि तारण तरण स्वामी की जय हो , सच्चे भावलिंगी सन्त थे । कानजी स्वामी के अनुयायियों को भी इनके प्रवचन पर रोक लगाने की मांग करनी चाहिए

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  10. जय जिनेन्द्र
    भाई ये बहुत बड़ी साजिश है इनकी सत्य धर्म को झुटलाने की में एक मुमुक्षु हूँ हमारे पूज्य गुरुदेव ने हमे हमेशा यही बताया है कि पूज्य श्री तारण स्वामी जी महाराज भावलिंगी संत थे ओर उनकी वाणी सर्वज्ञ की वाणी थी और अनुभव रस से भरी है हमारे गुरुदेव ने कई बार भरी सभाओ में तारण स्वामी जी के द्वारा रचित ग्रंथो पर प्रवचन किये है ,
    हम आपके दुख को समझ सकते है क्योंकि ये सुधासागर हमारे गुरुदेव कांजी स्वामी के बारे में भी हमेशा अपशब्द बोलते रहते है इसीलिए हम को मुमुक्षु समाज एवं समैया समाज दोनो को मिलकर इनका जोरदार विरोध करना चाहिए, जय जिनेन्द्र,,
    नितिन नजा जैन ललितपुर,,

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  11. Nahin. . muni ka kam dharmopdesh Dena. swa ka chintan Karna, Karna hota hai. Na ki kisiki ninda Karna.. Hamare gurudev shree tartan taran mandalacharya bhagwaan ne apne14 granthon me shudh deshna ka varnan kiya hai.... Jinendra bhagwan ke vachno ka varnan kiya hai. .

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  12. Sudha sagar maharaj ji ko ye bolne ka na hi hak hai or na hi muni dharm ki maryada hai.
    Muni ke khilap koi bada kadam uthana chahiye.

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  13. आप सभी के विचारों से में पूरी तरह सहमत हूं लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जब हमारा समाज की गुटों में बंटा हुआ हो तो ये लड़ाई आसान नहीं होगी चूंकि हमें पहले अपने समाज को एकत्रित करना होगा और एकमत होकर इसके खिलाफ रणनीति बनानी होगी। धन्यवाद आप सभी दोस्तों का...

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