बाबुल का घर छोड़ पिया के घर चली जाती हैं”
हर माता-पिता का सपना होता
है कि उसकी लाड़ली बिटिया को सुख-संसार मिले, एक अच्छा पति और घर-वार मिले, उसकी बिटिया
पर दु:ख की परछाई भी न पड़े और दामन सदा खुशियों से भरा रहे। ऐसी सोच रखने वाले माता-पिता गलत तो नहीं हैं
लेकिन शायद वे भूल जाते हैं कि इस समाज़ में कुछ ऐसे दरिंदे भी हैं जो दहेज़ की
लालसा रखते हैं।
दिनांक 02 अप्रैल 2018 दिन
सोमवार, स्थान दिल्ली, मोहल्ला राजनगर, एक सामान्य वर्ग परिवार, पिता नोएडा की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं और
मां घर की देख-रेख में व्यस्त रहती हैं। प्रकाश जी की दो बेटियां हैं, जो शादी के
लायक हो चुकी हैं। सोमवार का दिन शाम 6 बजे दरवाजे की घंटी बजती है और आवाज़ आती
है, मैं हूं दरवाजा खोलो, घर के मुखिया प्रकाश जी अंदर आते हैं। बड़ी बेटी एक
गिलास पानी लेकर आती है और छोटी बेटी चाय बनाने जाती है तभी पिता प्रकाश बोलते हैं
राधिका की मां सुनती हो एक खुशख़बरी है, माताजी मुस्कुराते हुए पूछती हैं अब क्या
खुशख़बरी लेकर आए हो। प्रकाश जी इस रविवार लड़के वाले आ रहे हैं अपनी बड़ी बेटी
राधिका को देखने, तभी राधिका शरमाते हुए घर के अंदर अपने कमरे में चली जाती है और
धीरे से दरवाजा बंद कर लेती है।
राधिका की मां कहती है चलो
अच्छा हुआ कि राधिका की शादी के लिये रिश्ता आ गया, माता जी पूछती हैं कि कौन है
लड़का, क्या करता है, कैसा है, परिवार कैसा है, कहां रहता है, प्रकाश जी कहते हैं
रुको भी अब, सब बताता हूं। लड़का नोएडा में किसी प्राइवेट कंपनी में जॉब करता है, घर
में एक बहिन, माता-पिता और एक बड़ा भाई है, उनका पूरा परिवार नोएडा में निवास करता
है, खुद का घर है। पिता रिटायर्ड हो चुके हैं वो भी प्राइवेट कंपनी में जॉब करते
थे और उनकी पत्नी घर की देख-रेख करती हैं, बड़ा भाई भी प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर
है औऱ शादी शुदा है।
8 अप्रैल, रविवार का दिन
दोपहर 2 बजे लड़के वाले आते हैं,
परिवारों के बीच बातचीत होती है, लड़का-लड़की एक-दूसरे को पसंद कर लेते हैं। दोनों
परिवारों की सहमति से शादी फाइनल हो जाती है। फिर क्या अगले महीने 6 मई रविवार के
दिन की शादी तय हो जाती है। लड़की का परिवार बहुत खुश होता है और मिठाई खिलाकर
दोनों परिवारों का मुंह मीठा कराया जाता है...
तभी लड़के के पिता कहते हैं
प्रकाश जी हमारी कुछ शर्तें हैं (शर्तें तो नाम की होती हैं दरअसल यह तो मांगें
हैं) प्रकाश जी मुस्कुराते हुए पूछते हैं जी बताइए, तभी लड़के के पिता कहते हैं कि
शादी का खर्चा पूरा हम उठाएंगें और आप सिर्फ हमें 10 लाख कैश, बर्तन भाड़े औऱ कुछ
घर ग्रस्ती का सामान और एक फोर व्हीलर गाड़ी 8-10 लाख तक की। प्रकाश जी और उनकी
पूरी फैमिली यह बात सुनकर सन्न रह जाती है लेकिन पिता प्रकाश मुस्कुराते हुए कहते
हैं जी आपकी सारी शर्तें हमें मंजूर हैं। फिर क्या खुशी-खुशी लड़के वाले खाना-खाकर
घर से चले जाते हैं।
थोड़ी देर बाद घर में
सन्नाटा सा...
लड़के वालों के जाते ही घर
में सन्नाटा सा पसर जाता है और राधिका की मां कहती हैं कि आपने हां तो कर दिया पर
इतने पैसे का इंतजाम कैसे होगा और आप गाड़ी कहां से लेकर आएंगे, तभी पिता प्रकाश
कहते हैं सब हो जाएगा मैं हूं न और वैसे भी हमारी बेटी राधिका बहुत खुश रहेगी
वहां। आजकल तो लोग बहुत ज्यादा मांग कर देते हैं उन्होंने तो हमसे सिर्फ इतना ही
मांगा है और वैसे भी लड़का जॉब करता है खुद का घर है और क्या चाहिए। लड़की की मां
कहती है अभी हमारी दूसरी बेटी भी है शादी के लायक तब हम कहां से उसकी शादी करेंगे,
पिता प्रकाश कहते हैं अभी एक की हो जाए तो दूसरी की भी हो जाएगी।
शादी का दिन...
6 अप्रैल, दिन रविवार आज
राधिका की शादी हो गई और शर्त के अनुसार बेटी के पिता ने लड़की वालों की सारी
मांगें पूरी करते हुए अपना वचन निभाया।
एक महीने बाद...
आधी रात में बेटी राधिका का
फोन आता है और पिता प्रकाश फोन उठाते हैं बेटी राधिका सिसकते सिसकते आंसुओं के साथ
बात करती है और कहती है पिता जी मुझे यहां से ले जाओ तो प्रकाश जी पूछते हैं सब
ठीक तो है बेटी...नहीं पिता जी बस आप मुझे यहां से जल्दी ले जाओ...
अगले दिन पिता प्रकाश लड़के
को फोन करते हैं और पूछते है कि कोई बात हुई है क्या बेटा,,,लड़का हां मुझे 10 लाख
रुपये चाहिए नहीं तो अपनी बेटी को ले जाओ तभी पिता प्रकाश कहते हैं नहीं बेटा ऐसा
मत कहो, जैसा तुम्हारे पिता जी ने कहा था वैसा ही हमने किया फिर अब 10 लाख किस बात
के औक कहां से लेकर आऊं। मैंने पहले का लिया हुआ उधार तो अभी चुकाया नहीं है अब इतनी
बड़ी रकम किससे मांगूगा बेटे, थोड़ा समय चाहिए फिर कर दूगा. लड़का मैं नहीं जानता
कहीं से भी लाओ मुझे एक हफ्ते में पैसे चहिए नहीं तो समझ लेना...
पिता प्रकाश बहुत ही परेशान
तभी उनकी पत्नी ने सारी बातें पूछी तब प्रकाश जी ने दु:खी होकर सारी आपबीती सुनाई
तो मां भी सुनकर हैरान रह गई।
एक हफ्ते बाद फोन आया कि
पापा मैं जा रही हूं...
आधी रात में फिर से फोन की
घंटी बजती है और शब्द होते हैं पापा मैं जा रही हूं अपना औऱ परिवार का ध्यान रखना...थैंक्यू
पापा
अगले ही दिन पिता दिल्ली से
नोएडा के लिये रवाना होते हैं और वहां पहुंचते ही बेटी की लाश देखते ही ज़मीन पर
गिर जाते हैं और फूट-फूट कर रोने लगते हैं।
आखिर क्या गलत़ी थी उस बेटी
की, उसका भला सोचने वाले उस पिता की अगर आपको समझ आ जाए तो इसके खिलाफ आवाज़ उठाओ
न कि दहेज़ को बढ़ावा दो...कानून है लेकिन उसका उपयोग हम नहीं करते या करना नहीं
चाहते, क्योंकि दहेज़ एक प्रथा है...
लेकिन मैं कहता हूं हमारे
समाज़ के लिये दहेज़ एक अभिशाप है...